अपने दोस्तों के साथ दैनिक जागरण चौराहे पे खड़ा चाय पी रहा था..कुछ ही दूर पर सड़क किनारे कुछ लोगों
का मजमा लगा था..मैं भी उत्सुकता बस वहां पहुंचा..दो नन्हे बच्चे खेल तमासा दिखा रहे थे...
लोग जमीन पर रखे कटोरे में सिक्का डाल रहे थे...तो कुछ बिना डाले चले जा रहे थे..लगभग आधे घंटे बाद
खेल खत्म हुआ.....भीड़ छटने लगी थी..अब सिर्फ वही दोनो बचे थे..मेरे दिमाग में कुछ चल रहा था...मै उनके
पास गया और बड़ी मुश्किल से कुछ बात कि....
था...मासूम कन्धों पर कितना बोझ..... ...पेट कि आग क्या क्या नही कराती.....
भाई-बहनों के साथ रहता है.एक वर्ष पहले इसके पिता को लकवा
पड़ा था..तब से वह काम करने के काबिल नही बचे और तब से वह
बिस्तर में ही पड़े रहते है..गोपी की माता दूसरे घरों में बर्तन धोती
हैं.
और महीने में दो हज़ार रुपये कमाती हैं.परन्तु यह रकम सात लोगों
के परिवार का खर्चा चलाने के लिए काफी नहीं थे अतः परिवार
चलाने कि जिम्मेदारी श्याम के मासूम कंधे पर आ गयी.
इन दोनों को अपना स्कूल छोड़ना पड़ा और पैसों की खातिर इन्हें अपना बचपन कुर्बान करना पड़ा..
आज ये सड़क पर खेल तमाशा करते है और बदले में जो पैसा पाते हैं उससे घर का खर्चा चलता है...
ये दोनों पेट की आग बुझाने के लिए करतब दिखाते हैं..गरीबी बचपन को किस कदरकुचल देती है इसका ताज़ा
गवाह है गोपी और छूटकी....
बचपन अरमानों, ख्वाबों ख्वाहिसों का बसेरा होता है..अल्हड़ता,ईमानदार शरारतें ये सब बचपन के लक्षण होते हैं.
बेफिक्री,बेख्याली अगर बचपन में न हो तो फिर बचपन कहा रह गया.. यूँ तो मासूम बचपन दुनिया के झमेले
से दूर रहता है ज़रा सोचिये अगर इसी बचपने में कमाने का बोझ हो जाये तो फिर क्या बीतेगी इन मासूम
कन्धों पर..और फिर कहाँ रह जायेगा बचपना.... यह कड़वा सच केवल गोपी और छुटकी की ही नहीं है. यह दास्ताँ
उन करोड़ों बच्चों की है जिनका बचपन गरीबी के कारण अंधकारमय हो गया है और मज़बूरन उन्हें
भिक्षावृत्ति/मज़दूरी करनी पड़ रही है.....
गरीबी के बोझ तले मासूम छुटकी |
वैसे इस सड़क से हर रोज सैकड़ों हजारों ऐसे लोग गुजरते हैं जो एक बार चाह ले तो इनकी तकदीर बदल
सकते हैं..लेकिन वे क्युं कर ऐसा चाहेंगे...
काले शीशे की बंद गाडिओं में घूमने वाले इन अफसरानों के दिमाग पर कालिख जो पुती हुई है..बड़े बड़े
सेमिनारों और कार्यक्रमों में ये आदर्श झाड़ते है,.बचपन बचाओ अभियान चलते हैं लेकिन खुद के घर में
बालश्रम करवाते हैं........
भारतीय संविधान में बहुत से कानून बाल मजदूरी को रोकने के लिए बनाये गए है पर ये संविधान धरातल पर नजर नही आते जरूरत है सच्चाई को देखने और फिर उसे जमीनी स्तर पर लागू करने की,एक संकल्प लेने की …अपने देश कि खातिर,अपने समाज के खातिर……..ज़रा सोचिये ! इन मासूमों के बारे में अंत में बस यही कहना चाहूँगा...
ज़रा इन आँखों को देखो
इनमे जाने कैसी लाचारी है
इनमे जाने कैसी लाचारी है
यह ही भविष्य हैं भारत के?
यह ही पहचान हमारी हैं?.....
वाह एक बार फिर खूबसूरत पर्स्तुती तुम्हरी लेखनी को पंख लगे संवेदनशील प्रस्तुति
ReplyDeletebhut sundar.......
ReplyDeleteACHA HAI BHAI
ReplyDeletewell done ashish bhai ...
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