Friday, February 4, 2011

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें...





शाम को छज्जे पर खड़ा म्यूजिक सुन रहा था...आज मन थोडा परेशान सा है..एक अजब सी ख़ामोशी और उदासी छाई है मन पर.पता नही क्यु?आज बस आसमान निहारने को जी चाह रहा है.अपने आप को बहलाने की नाकामयाब कोशिश कर रहा था..जाने क्या सोच रहा था खुद को पता नही.आज मेरे ऊपर म्यूजिक का भी कुछ असर नही हो रहा.
 मै अपने ही रंग में डूबा हुआ.खुद को भुलाकर अनजाने ख्यालों में डूबा हुआ अपनी गुमनाम परेशानियों से परेशान आसमान में टकटकी लगाये खड़ा था..तेज आवाज़ में मुजिक चल रहा था लेकिन मुझे जैसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था.मुझे ऊबन हो रही थी.मैंने म्यूजिक बंद कर दिया...अब फिर छज्जे पर आकर खड़ा हो गया...इतने में देखता हूँ की एक छोटा बच्चा चेहरे पर मुस्कराहट लिए मेरी ओर देख रहा है! मेरे पड़ोस के जो स्लम एरिये का जान पड़ता है.....उसके मैले फटे कपडे देखकर मैं अंदाजा लगा सकता हूँ!

मैं आँखें उचका कर पूछता  हूँ " क्या है ?  क्या चाहिए ?" बच्चा थोडा बेतकल्लुफ होकर झिझकते हुए कहता है " एक बार गाना बजाओगे मुझे सुनना है.. सुनाओगे ?" " मुझे पहले तो गुस्सा आता है लेकिन फिर हँसी भी....कौन सा गाना?" बच्चा करीब आकर कहता है " अभी जो बज रहा था, ...पल पल न माने टिंकू जिया., मुझे बहुत पसंद है!" ओह उस गाने की बात कर रहा था जो मै अभी सुन रहा था ...! मैं दो बार गाना बजा कर सुनाता हूँ.उन बच्चों की थिरकन से सारा मोहल्ला गुलजार हो गया....वो बहुत खुश थे !गाना सुनकर, मुझे बाय
करके, वो बच्चा अपने चिल्लर पार्टी के साथ निकल जाता है!..अब मेरी उदासी भी जा चुकी थी..

 
चिल्लर पार्टी तो चली गयी लेकिन मेरे मन मे ख्यालों के बादल घुमड़ने लगे थे..मै सोच रहा हू  कि ख़ुशी बड़ी-बड़ी चीज़ों कि मोहताज नहीं होती ! एक गाना सुनकर वो बच्चा इतना खुश हो गया! शायद जिंदगी से हमें बहुत ज्यादा नहीं चाहिए होता है...वो तो हर कदम पर हमें गले लगाना चाहती है! हम ही उससे संतुष्ट नहीं होते जो वो हमें देती है!

दूसरी बात जो साथ साथ साथ मेरे दिमाग में चल रही है वो ये कि जिंदगी खुशियाँ बांटने का दूसरा नाम है! दूसरों को थोडी सी ख़ुशी देकर हम उस पर कोई एहसान नहीं करते बल्कि अपने दिल को सुकून से भरते हैं!

किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना खुदा की बंदगी का सबसे पाकीजा रूप है! और जहां तक हो सके ये मौका हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए!..उस नन्ही सी जान ने मुझे जिंदगी का एक पाठ पढ़ा दिया.उसकी मुस्कान ने मुझे जो आत्मसंतुष्टी दी ... निदा फाजली की ये लाइनें लगातार जेहन में चल रही है...
 
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उडाया जाए.....






4 comments:

  1. वाह आशीष आनंद आया पढकर

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  2. आप के दिए हुए मन्त्र को जीवन में उतार रहा हूँ....

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