गुलाबी ठण्ड..... गुनगुनाती धूप....कुल मिलाकर मौसम मस्ताना..आज तो बस मौज काटने का मन हो रहा था...लेकिन मन का हमेशा थोड़े ही होता है ‘‘होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है.’’.. यूनिवर्सिटी में...मुकुल सर कि क्लास होनी थी तो बस जाना ही था...यूनिवर्सिटी के लिए टम्पू में बैठा....बड़ा शौक़ीन टाइप का ड्राइवर था....झमाझम गाना बजे जा रहा था एक के बाद एक...........गोरे गोरे मुखड़े पे कला कला चश्मा .....तौबा खुदा खैर करे खूब है करिश्मा....खूब है करिश्मा...खैर १५ मिनट की दूरी तै कर मै यूनिवर्सिटी कैम्पस पंहुचा..
....मै यूँ ही गुनगुनाये जा रहा था गोरे-गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा....मेरा टिंकू जिया आज अटक गया इस गाना पे.....मै बार-बार गुनगुनाये जा रहा था ...गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा...गोरे-गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा...जब टिकू जिया अटक ही गया है तो क्यों न आज इसी कि सुने और बात करें ‘गोरे मुखड़े’ और ‘काले चश्मे’ की.
...यारों जिंदगी में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसे ‘गोरे मुखड़े’ न पसंद हो हर दिल कि चाहत होती है कि वह खूबसूरत दिखे...इसी चाहत ने सौंदर्य प्रसाधनों का एक बड़ा बाज़ार तैयार कर दिया है.तमाम तरह के प्रोडक्ट्स बाज़ार में मौजूद है जो लोगों कि इस चाहत को कैश कराती है....और लोग गोरा बनाने के चक्कर में पिले पड़े हैं....फेयर एंड हैण्डसम कि खफत जबर्दस्त हो चली है.....पहले ये माना जाता था श्रंगार महिलाओं का काम होता है...
लेकिन अब लड़के भी पीछे नही हैं......और अगर इस सुन्दर मुखड़े पर एक चश्मा लगा हो तो कहना ही क्या.....
.....चश्मे से याद आया अभी हाल ही में एक मूवी आई थी दबंग...उसमे चुलबुल पांडे(सलमान खान) का चश्मा लगाने का अंदाज सबसे जुदा था वैसे तो चश्मा नाक के ऊपर होता है लेकिन चुलबुल मियां ने अपने गर्दन पर लगा रक्खी है जब उससे एक सीन में जब दयाल बाबू (अनुपम खेर) चुलबुल पांडे से पूछता है
तुम ये काला चश्मा पीछे क्यों लागते हो? तो वो कहता है....
ताकि हमें आगे और पीछे दोनों तरफ दिखे......
....क्या ऐसा पासिबल है???शायद नही!.
चश्में का इस्तेमाल हम चीज़ों को साफ़ देखने में करते हैं....लेकिन जब बात शौक की आती है तो हमे अक्सर देखने को मिल जाता है लोग रात में भी काला चश्मा पहन कर बड़े गर्व से चलते हैं....इस बात से बेफिकर होकर कि कदम कभी भी लडखड़ा सकते हैं.....भई फैशन की दुनियां में गारंटी कहाँ होत्ती है.......
चलिय इसी टोपिक को लेकर डूबते हैं जीवन की गहराइयों में.नाक के ऊपर लगने वाले इस चश्मे के बारे में तो सभी जानते है लेकिन एक चश्मा हमारे दिल-ओ –दिमाग पर भी लगा होता है...नाक पर लगे चश्मे से तो हम सिर्फ बाहरी चीजों को देखते हैं पर मजे की बात ये की दिल-ओ–दिमाग पर लगे चश्मे से हमारा नजरिया बनता है..और नजरिया ही हमारा व्यव्हार निर्धारित करता है....जिस तरह से नाक पर लगने वाले चश्मे में कई कलर के ग्लास होते है..ठीक इसी तरह दिल-ओ–दिमाग पर लगने वाले चश्मे में भी कई तरह के ग्लास लगे होते हैं......
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”....तो भईया मन को चंगा रखिये और मस्त रहिये.....और दुनिया को दिल की नजर से देखना शुरू कीजये....फिरे देखिये ये दुनियां कितनी हंसी है..........
आशीष
ReplyDeleteहमेशा की तरह शुरुवात लाजवाब पर ये तो शुरू होने से पहले ही खतम हो गया यार थोडा सा और बढाओ शुरुवात है न अभी लिखने की एक बार लत पड़ जायेगी तो खुद बा खुद लिखना आ जाएगा मिलते हैं ब्रेक के बाद
जितना भी लिखा है अच्छा लिखा है