कुछ तस्वीरें हमारे सामने हैं....पहली ये जो कतार में बैठे लोग हैं...हाथ में कटोरा लिए, और लबपे बिलकुल प्रोफेसनल दुआ सजाये हुए हैं. अगर आप किसी लड़की/लड़के के साथ हैं तो फिर ये आपकी जोड़ी उससे मिला देते हैं.चाहे वो आपकी बहन/भाई/दोस्त ही क्यों न हो..अगर आप अकेले हैं और स्टूडेंट टाइप के हैं तो ये आप को भरोसा दिलाते हैं कि ऊपर वाले कि रहमत से आप की जोड़ी बन जायेगी. आपको सुन्दर लड़की/लड़का मिलेगी मिलेगा.. लेकिन बदले में आप इनके कटोरे में खनक पैदा करें...
अपने कटोरे का वजन बढ़ाने के लिए ये अपने ग्राहकों को तरह तरह के प्रलोभन देते हैं मसलन खूब तरक्की करो ..पैसा कमाओ ...लक्ष्मी धन का भंडार भरें...अच्छे नम्बर से पास हो ...अच्छी दुल्हन/दूल्हा मिले वैगेरह-वैगरह....अगर इसपर भी नही माने तो इक और लालच...गरीब,दुखियारे कि मदद करो बाबा/भगवान तुम्हारी मदद करेगा...अगर आप इस झांसे में नही आये तो...इनकी दुआ को बददुआ तब्दील होते देर नही लगती...और दबी जुबान से ...ब्ला ब्ला ब्ला..
आखिर ब्ला ब्ला क्यों न करे. सवाल पापी पेट का जो ठहरा.इनमे से ज्यादातर हट्टे-कट्टे हैं..जो मेहनत से कोई काम कर सकते हैं और कमा सकते हैं...और उससे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं...तो फिर ये भिक्षावृत्ति क्यूँ करते हैं..जबकि उन्हें इस काम में तरह तरह के कमेन्ट सुनने पड़ते हैं गालियाँ सुननी पड़ती हैं?फिर भी अपने.ज़मीर को खूँटी पर टांग हाथ में कटोरा लिए निकल पड़ते हैं अपने-अपने बिजनेस पर...
दूसरी तस्वीर इस बुजुर्ग की..जो अपने बिजनेस पर हैं...जो अपनी दूकान सजाये बैठा हुआ है..उम्र करीब ७५ वर्ष..नाम भगत..पेशे से ये मोची. इक बूढी पत्नी..समेत सात लोगों का खर्चे का बोझ इनके ऊपर हैं...दिन के १२ बजने को हैं लेकिन अभी तक बोहनी नही हुई है...इन्हें अभी अपनी पहली बोहनी का इन्तजार है...इनकी आँखे रास्ते से गुजरने वाले हर बंदे को आशा से देख रही हैं.....कोई तो ग्राहक आये..जिसके जूते चमका कर(मेहनत कर) ये अपना तथा अपने परिवार के लिए दो जून कि रोटी का इंतजाम कर सके..दिन भर काम कर बमुश्किल से ५० -६० रूपये कमा पाते हैं...लोग इस रस्ते से गुजरते जा रहे हैं...किसी की नजर इस मजबूर पर नही पड़ रही है..भगत से कुछ कदम बैठे भिखारियों के कटोरों में सिक्कों का वज़न बढ़ता जा रहा है लेकिन भगत की अभी तक बोहनी नही हुई..भगत हट्टे–कट्टे नही हैं. लेकिन उम्र के इस पड़ाव में होकर भी हान्ड़तोड़ मेहनत जरूर कर रहे हैं...इस मेहनत का नतीजा आप के सामने हैं...
लोग भिक्षावृत्ति क्यों कर रहे हैं? इस बात का उत्तर शायद मिल ही गया......
इस लेख को लिखते समय लगातार मेरे दिमाग में मुन्नवर राना के ये अल्फाज गूँज रहे हैं...
बेबसी मस्जिद के मीनारों को तकती रह गयी
और मस्जिद भी वफादारों की तकती रह गयी...
bhut hi acha likha hai bhai.....keep it up....
ReplyDeleteaapse hme aisi hi kuch ummeed thi.....