Thursday, March 10, 2011

बेबसी मस्जिद के मीनारों को तकती रह गयी..






कुछ तस्वीरें हमारे सामने हैं....पहली ये जो कतार में बैठे लोग हैं...हाथ में कटोरा लिए, और लबपे बिलकुल प्रोफेसनल दुआ सजाये हुए हैं. अगर आप किसी लड़की/लड़के के साथ हैं तो फिर ये आपकी जोड़ी उससे मिला देते हैं.चाहे वो आपकी बहन/भाई/दोस्त ही क्यों न हो..अगर आप अकेले हैं और स्टूडेंट टाइप के हैं तो ये आप को भरोसा दिलाते हैं कि ऊपर वाले कि रहमत से आप की जोड़ी बन जायेगी. आपको सुन्दर लड़की/लड़का मिलेगी मिलेगा.. लेकिन बदले में आप इनके कटोरे में खनक पैदा करें...

अपने कटोरे का वजन बढ़ाने के लिए ये अपने ग्राहकों को तरह तरह के प्रलोभन देते हैं मसलन खूब तरक्की करो ..पैसा कमाओ ...लक्ष्मी धन का भंडार भरें...अच्छे नम्बर से पास हो ...अच्छी दुल्हन/दूल्हा मिले वैगेरह-वैगरह....अगर इसपर भी नही माने तो इक और लालच...गरीब,दुखियारे कि मदद करो बाबा/भगवान तुम्हारी मदद करेगा...अगर आप इस झांसे में नही आये तो...इनकी दुआ को बददुआ तब्दील होते देर नही लगती...और दबी जुबान से ...ब्ला ब्ला ब्ला..
आखिर ब्ला ब्ला क्यों न करे. सवाल पापी पेट का जो ठहरा.इनमे से ज्यादातर हट्टे-कट्टे हैं..जो मेहनत से कोई काम कर सकते हैं और कमा सकते हैं...और उससे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं...तो फिर ये भिक्षावृत्ति क्यूँ करते हैं..जबकि उन्हें इस काम में तरह तरह के कमेन्ट सुनने पड़ते हैं गालियाँ सुननी पड़ती हैं?फिर भी अपने.ज़मीर को खूँटी पर टांग हाथ में कटोरा लिए निकल पड़ते हैं अपने-अपने बिजनेस पर...
(यहाँ पर भिक्षावृत्ति को बिजनेस इस लिए कहा जा रहा है क्यूँ की कुछ लोगों की तो मजबूरी होती है पर अब ज्यादातर लोगों का पेशा बन गया है ) 



दूसरी तस्वीर इस बुजुर्ग की..जो अपने बिजनेस पर हैं...जो अपनी दूकान सजाये बैठा हुआ है..उम्र करीब ७५ वर्ष..नाम भगत..पेशे से ये मोची. इक बूढी पत्नी..समेत सात लोगों का खर्चे का बोझ इनके ऊपर हैं...दिन के १२ बजने को हैं लेकिन अभी तक बोहनी नही हुई है...इन्हें अभी अपनी पहली बोहनी का इन्तजार है...इनकी आँखे रास्ते से गुजरने वाले हर बंदे को आशा से देख रही हैं.....कोई तो ग्राहक आये..जिसके जूते चमका कर(मेहनत कर) ये अपना तथा अपने परिवार के लिए दो जून कि रोटी का इंतजाम कर सके..दिन भर काम कर बमुश्किल से ५० -६० रूपये कमा पाते हैं...लोग इस रस्ते से गुजरते जा रहे हैं...किसी की  नजर इस मजबूर पर नही पड़ रही है..भगत से कुछ कदम बैठे भिखारियों के कटोरों में सिक्कों का वज़न बढ़ता जा रहा है लेकिन भगत की अभी तक बोहनी नही हुई..भगत हट्टे–कट्टे नही हैं. लेकिन उम्र के इस पड़ाव में होकर भी हान्ड़तोड़ मेहनत जरूर कर रहे हैं...इस मेहनत का नतीजा आप के सामने हैं...
लोग भिक्षावृत्ति क्यों कर रहे हैं? इस बात का उत्तर शायद मिल ही गया......
इस लेख को लिखते समय लगातार मेरे दिमाग में मुन्नवर राना के ये अल्फाज गूँज रहे हैं...


बेबसी मस्जिद के मीनारों को तकती रह गयी  
और मस्जिद भी वफादारों की तकती रह गयी...




Tuesday, March 8, 2011

आखिर सरकार चाहती क्या है ?




आज सुबह का समाचार पत्र पढ़ रहा था.पहली खबर मोटे मोटे अक्षरों में ... ‘पी.जे.थामस की नियुक्ति ख़ारिज’थामस जी अब तक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद कि शोभा बढा रहे थे.और केंद्रीय सत्ता के काफी खासम-खास माने जाते हैं...तभी तो इनकी कुर्सी बचाने के लिए केन्द्रीय सत्ता ने अपनी पूरी दम लगा दी थी.थामस को बचाने में एक से बढ़ कर एक दलीलें दे थी...लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने दूध का दूध और पानी का पानी कर ही दिया...और थामस महोदय के चारों खाने चित्त हो गए..थामस खुद तो चले गए लेकिंन साथ ही केंद्र सरकार की लुटिया डुबोते गए..
समझ नही आ रहा कि केंद्र सरकार चाहती क्या है?
पी जे थामस कि नियुक्ति को लेकर विपक्ष ने आवाज भी उठाई थी इसके बावजूद उन्हें देश के इस महत्वापूर्ण पद पर बैठाया गया .सिर्फ यही नही अभी कुछ दिन पहले टू जीस्पेक्ट्रम घोटाले की पोल खुली तब भी  केंद्र सरकार ने ऐसा ही रवैया अपनाया था। वह तरह-तरह के कुतर्क देकर यह साबित करने की कोशिश करती रही कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई गड़बड़ी नहीं हुई।आखिरकार उस मामले में भी असलियत लोगों के सामने आ ही गई.काले धन के मामले में सरकार की काहिली जग जाहिर है...
इन सारी बातों से ये साफ़ जाहिर होता है कि दागदार अतीत वाले अधिकारी को जान बूझ कर केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाया गया..टू जी स्पेक्ट्रम मामले में भी देश को गुमराह करने कि कोशिश की गई.देश कि जनता जवाब चाहती है आखिर ऐसा क्यूँ किया गया?
आई नेक्स्ट (माय व्यू) में ७ मार्च को प्रकाशित.



Monday, March 7, 2011

ये सपनों को पंख लगते हैं.














ये सपनों को पंख लगते हैं.
जो भटके हम, राह दिखाते हैं.
चाहे हो पढाई का टेनसन
या फिर हो कोई प्रोब!
हर वक्त हमारी हेल्प के लिए,राजी रहते हो आप!
इतनी उलझन
फिर भी नो टेनसन,
हम सब का भार उठाते हैं.
हर प्रोब को दिखा के ठेंगा
बस ऐसे ये मुस्काते हैं..
ये अपने मुकुल सर हैंआशी
शिक्षा की ज्योति जलाते हैं....

Saturday, March 5, 2011

न हम होते तो क्या होता ?

हम न होते तो क्या होता ?..शायद ये धरती न होती...आसमान न होता...न नदियाँ 
होती ...न झरने होते ....न सूरज उगता...न शाम होती..न शीला जवान होती और न 
ही मुन्नी बदनाम होती.....धरती का नामों निशान न होता...भाई धरती का 
आस्तित्व भी तो हमी से है.अगर हम न होते तो धरती का बैलेंस गड़बड़ा जाता और 
धरती कब कि पलट चुकी होती..हमी से इंसानियत का नाम जिंदा है...और हामी से 
हैवानियत का रोशन घरौंदा है...आप सोच रहे होंगे भला मेरे होने, न होने से इन सब 
का क्या वास्ता???
वास्ता क्यूँ नही है जनाब?...अगर हम न होते तो भला हम कैसे जान पाते इन सारी 
चीजों के बारे में या फिर कैसे महसूस कर पाते उन सारी बातों को जिनका जिक्र मैंने 
ऊपर किया है..अब हम हैं तभी जान रहे हैं कि ये सारी चीजे भी हैं...लेकिन बात का 
असली मुद्दा जो है वो ये है कि हम न होते तो क्या होता????देखने/सुनने में तो 
बड़ा ही हल्का प्रश्न लगता है ये लेकिन जब मै इस बारे में लिखने बैठा तो मेरी बत्ती 
गुल हो गई....अब तक सिर्फ दूसरी चीजों या लोगों के बारे में सोचा करता था कि ये 
होता तो क्या होता ...वो न होता तो क्या होता .लेकिन अब तक ये नही सोचा था 
कि हम न होते तो क्या होता....हम अपने जीवन में ज्यादा ज्यादा से ज्यादा समय 
दूसरों के बारे में आलतू-फालतू ही खाफाते रहते हैं..लेकिन अपने बारे कभी ये ठीक से 
नही सोचते कि भाई हामारा आस्तित्व क्या है? हम दुनिया को किस तरह से 
कंट्रीब्यूट कर रहे हैं...सिर्फ बतकूचन में ही ज्यादा से ज्यादा टाइम गवांते हैं...
हर चीज का अपना आस्तित्व होता है..चाहे वह तिनका हो या पहाड...मनुष्य हो या 
पशु...नदियाँ हो या फिर सागर ...और सभी इक दुसरे से कही न कहीं प्रभावित होते 
हैं...इस आधार पर मै भी यह कह सकता हूँ कि अगर हम न होते तो तो कुछ लोग 
जरूर प्रभावित होते...कुछ खुश होते तो कुछ ज्यादा खुश होते और कुछ के दुःख और 
परेशानी का सबब भी मै होता..कहते हैं हर चीज का अपना दायरा होता है.जिसमें वह 

प्रभावशाली होता है...मेरे भी दायरे में जो लोग हैं वो जरूर मुझसे प्रभावित होते...

हालंकि मै ये दावे के साथ नही कह सकता क्यूँकि वक्त अपने साथ कई विकल्प लेकर 

चलता है...मै नही तो कोई और सही...जिंदगी कि गाडी चलती ही रहती है...लेकिन 

इक बात है..जो सोलह आने सच है वो यह कि अगर गुरु जी आप न होते तो शायद 

हम ब्लॉग पर ना होते...
   
  

तुम



 
              
                
                  इक न इक दिन
                 तुम आओगी
                मुझे एतबार था
                 तुम मेरी होगी
             हर पल मेरे साथ होगी
                यह मेरा प्रेम था
                   आज
             तुम मेरे अनुभूति में हो
                    मेरी
             उदासी में इक मुस्कान हो
                   आज
              यह मेरा जीवन है..