कल मै मोबाइल रिर्चाज कूपन लेने दुकान गया हुआ था..तभी एक बुजुर्ग आये.दुबला पतला शरीर..सांवला रंग..बाल पूरे पके हुए..गाल तो धसे हुए थे लेकिन आँखों में गजब की चमक थी...उन्होंने दुकानदार से कहा भईया हमरे मोबिलिया में पईसा डाले के रहन..डाल दबा का...दुकानदार भौंहें खिचता हुआ..पड जायेगा..किसका चाहिए??....उस बुजुर्ग ने थोडा असहज भाव से मोबाइल उसकी तरफ बढा दिया(शायद उसे नही पता था)...दुकानदार (झल्लाकर)जाने कहाँ से चले आते हैं देहाती....(इस बात पर वहां खड़े कुछ शहरी जो अपने आप को सभ्य और पढ़ा लिखा समझते हैं मुस्कुरा रहे थे)..बडबड़ाते हुए बड़े ही असभ्य तरीके से उसने बुजुर्ग से बात की..खैर उसने ..५० रूपये का रिचार्ज कर दिया..बुजुर्ग ने पैसे दिए..बुजुर्ग के चेहरे पर अब संतुष्टी का भाव था...रिचार्ज करवाकर..वो बुजुर्ग जा चुका था...
दुकानदार की बात...“जाने कहाँ से चले आते हैं देहाती..”
मुझे चुभ गयी....मैं भी रिचार्ज कूपन लेकर वापस अपने कमरे पर आ गया लेकिन मेरे जेहन में बुजुर्ग का चेहरा और दुकानदार की बातें घूम रही थी...बरबस यूँ ही मुझे बेकल उत्साही कि ये लाइन याद आ गयी-
“फटी कमीज नुची आस्तीन कुछ तो है
गरीब शर्मों हया में हसीं कुछ तो है.”
दुकानदार उस बुजुर्ग से उम्र में कितना छोटा है लेकिन उसकी बेअदबी तो देखिये...जाने कहाँ जा रहा है समाज..छोटे बड़ों का अदब और लिहाज मिटता जा रहा है...बदलाव के इस दौर में..व्याहार बदलता जा रहा है..आप भी इस बदलाव को महसूस करते होंगे.....जरा सोचिये दुकानदार के इस व्यवहार से उस बुजर्ग को कितनी तकलीफ हुई होगी.उसके आत्मसम्मान को कितनी ठेस पहुची होगी..अगर दुकानदार उस बुजुर्ग से प्यार से बात करता..तो उस बूढ़े चेहरे पर थोड़ी खुशी और आत्म विश्वास जरूर देखने को मिलता.
ये तो एक छोटा सा वाकया है..मैं कई बार देखता हूँ बड़े बड़े अधिकारियों के छोटे छोटे बच्चे अपने से दोगुनी तिगुनी उम्र के अर्दलियों और ड्रायवरों को उनके नाम से बुलाते हैं....कितने कचोटता होगा उन्हें? उनके पढ़े लिखे माँ बाप जो सामाजिक कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और अखबारों में शान से फोटो छपवाते हैं, वो अपने घर में क्यों नहीं देखते?क्यों कभी नहीं सोचते कि उनके बच्चे उनके अधीन काम कर रहे लोगों को अगर भैया, दादा कहकर पुकारें..
अगर वे ऐसा करते हैं!..तो अपने पढ़े लिखे होने का सबूत तो देंगे ही और सबसे बड़ी बात यह कि किसी के आत्म सम्मान को बरकरार भी रखेंगे!.....और इस व्यवहार से लोगों को खुशी भी मिल जायेगी..
जो माँ बाप दुनिया के भूगोल, इतिहास, विज्ञान के बारे में बच्चों को बड़ी बड़ी बातें सिखाना चाहते हैं...वे इंसानियत का पाठ पढाना क्यों भूल जाते हैं! कई बार लगता है जैसे अमीरी के साइड इफेक्ट के रूप में गुरूर और अहम् अपने आप चला आता है!...एक गुजारिश है कि अमीरी/शहरीपन का चश्मा निकालकर दिल के दरवाजे खोलिए...इंसानियत को तरजीह दीजिए...बिना एक भी पैसा खर्च किये सिर्फ अपने व्यवहार से भी किसी को ख़ुशी दी जा सकती है! लेकिन इसके जरूरत है एक पहल की वो करना होगा हमे और आपको.....और हाँ
चाहे बंद हो दरवाज़ा,
लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
आशीष जबरदस्त छोटी छोटी बैटन में बड़े फलसफे ढूंढने लग गए हो देखा लिखना लिखने से आता है मैं हमेशा शायद न रहूँ पर ये बात हमेशा ख्याल रखना एक बार गाड़ी दौड पडी तो दौडती ही जायेगी प्रस्तुतीकरण भी बढ़िया है बधाई
ReplyDeleteगुरु जी सब आपका स्नेहिल आशीष है..
ReplyDeleteGURU JI SHI KH RHE HAI LIKHTE RHO
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