Sunday, May 20, 2012

मेरे कुछ मित्रो का कहना है की मुझे प्यार से बात करना नहीं आता ...लोगों से मिलना नहीं आता... यहाँ तक की ढंग से प्यार करना भी नही आता... ये सही  है  या गलत ये तो मै नही बता सकता लेकिन...बात महज इतनी सी है.......और कारण भी यही...शायद इसी लिए मैं...



मैंने नहीं सीखा
प्यार से बात करना
कैसे होती है प्यार से बातें
आज तक समझ नहीं पाया मैं.

जब देखता हूं
लोगों को बातें करते हुए
तो ताज्जुब होता है
क्या बातें करते होंगे वो
गूंजा करते होंगे जिनके
चर्चे गली-गली
क्योंकि बातें करते-करते
वो रात से दिन और
दिन से रात एक करते हैं
और फिर अचानक
एक दिन
दोनों चल पड़ते है
अलग-अलग रास्तों पर
फिर यह झूठा प्यार क्यों
यूं तो एक इंसान को
समझने में गुजर जाती है जिंदगी
फिर कैसे दावा करते हैं वो
मुझसे ज्यादा कौन समझेगा तुम्हें
मेरी समझ कहती है
झूठ कहते है, फरेबी है सब
क्योंकि जो खुद को नहीं जाना
कैसे जान पाएगा वो दूसरे को
फिर मैं सोचता हूं
अच्छा ही हुआ
मैंने नहीं सीखा
प्यार से बातें करना
अगर मैं भी सीख जाता
प्यार से बातें करना तो

मुझे लेना पड़ता सहारा झूठ का
और फिर झूठ के चक्कर में
झूठ का पुलिंदा कैसे ढोता
उम्र भर,
वैसे भी सच ढोने की हिम्मत नहीं
और झूठ को गले लगा लेता
अच्छा ही हुआ
मैंने नहीं सीखा..
प्यार से बातें करना.